12 Aug 2012

मैंने अपनी बुआ की लड़की को चोदा

मेरा नाम अमित है, मैं दिल्ली(रोहिणी) का रहने वाला एक इंजीनीयर हूँ। मैं 23 साल का लड़का हूँ। कहानी शुरू करने से पहले बता दूँ कि यह अन्तर्वासना पर मेरी पहली और सच्ची कहानी हैं। इस घटना से पहले मैंने किसी लड़की के साथ सेक्स नहीं किया था। मुझे नहीं मालूम था कि मुझे मेरा पहले सेक्स के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। मैं बहुत शर्मीला था मगर मेरे चरित्र में बदलाव किस तरह हुआ वो मैं बताने जा रहा हूँ।
हमारा खानदान बहुत बड़ा है, मेरे पापा की 5 बहनें हैं जिनमें से तीन दिल्ली में ही रहती हैं। कहानी तब की हैं जब मैं बी टेक के तीसरे वर्ष में था। मेरी बड़ी बुआ के लड़के की शादी थी, मेरी सबसे छोटी बुआ की लड़की चित्रा भी आई थी, उम्र 18 साल, गोरा बदन, सेक्सी, लंबाई 5 फीट 6 इंच और उसके मम्में करीब 34 और गांड 36 की होगी। चित्रा 20 से कम की नहीं लगती थी।
शादी के घर में भीड़ की वजह से बुआ और चित्रा हमारे घर पर रुकी। शादी को अभी चार दिन बाकी थे मगर शादी के घर में कितने काम होते हैं यह तो हम सभी जानते हैं।
इसलिए मम्मी बुआ के घर मदद के लिए सुबह ही चली जाती थी और मेरी बहन स्वाति भी जॉब पर चली जाती थी। मेरी बहन खुद खूबसूरत जिस्म की मालकिन है वो 24 साल की है कोई भी उसे देख ले तो चोदे बिना ना छोड़े ! उसका पूरा बदन कसा हुआ है।
मेरा भाई-भाभी भी जॉब पर चले जाते थे और घर में मैं और चित्रा बचते थे मगर फिर भी मेरी चित्रा से बात करने की हिम्मत नहीं होती थी क्योंकि तब मैं थोड़ा शर्मीला था।
एक दिन की बात हैं मैं और चित्रा घर पर अकेले थे तभी एक सेल्सगर्ल ने दरवाजा खटकाया।
मैंने दरवाजा खोला तो मैंने देखा कि वो ब्रा बेचने के लिए आई थी।
उसने कहा- घर में कोई लेडी है?
मैंने मना किया, तभी चित्रा आई और बोली- रुको मुझे खरीदनी है !
मगर उसको पसंद नहीं आई और उसने मुझे शाम को उसके साथ मार्केट चलने को कहा तो मैंने हाँ कर दी।
बाज़ार में सबसे पहले हमने कुछ खाया फिर उसने कहा कि उसे ब्रा-पैंटी खरीदनी है।
फिर हमने शॉपिंग की और भी काफी सामान खरीदा। घर आते-आते शाम के छः बज गए। जब हम घर पहुँचे तो भाई घर पर पहले से था। भाई थोड़ा थका हुआ था तो जाकर सो गया। चित्रा भी अपने कमरे में चली गई और मैं टीवी देखने लग गया।
थोड़ी देर में किसी ने मुझे पीछे से आवाज लगाई, मैंने मुड़ कर देखा तो वो चित्रा थी, वो बोली- मैं कैसी लग रही हूँ?
चित्रा सिर्फ ब्रा-पैंटी पहने थे और वो किसी परी से कम नहीं लग रही थी। उसे देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया मगर वो मेरी बुआ की लड़की थी इसलिए मैंने अपने आप को रोक लिया और उससे
कपड़े पहन कर आने के लिए कहा।
रात को मेरे ख़यालों में सिर्फ चित्रा और उसके चूचे घूम रहे थे और हाथ अपने आप पैंट के अंदर जा रहा था।
मैं उठा और चित्रा के कमरे की ओर बढ़ा। मैंने देखा कि चित्रा वहाँ नहीं थी और उसकी ब्रा वहाँ पड़ी थी। मैंने उसे उठाया और अपने कमरे में ले जाकर ब्रा लंड पर रख कर चित्रा के नाम की मुठ मारने लगा।
मैं मुठ मार रहा था, इतने में पीछे से आवाज़ आई। मैं मुड़ा तो देखा तो चित्रा थी।
मुझे अपनी हरकत पर शर्म आ रही थी और मैं एक बुत की तरह वहीं खड़ा रहा। चित्रा अंदर आई और चादर लेकर बिना कुछ कहे चली गई।
अगले दिन मैं चित्रा से नजर नहीं मिला पा रहा था, मैंने माफी मांगने की सोची।
जब सब चले गए तो मैं चित्रा के कमरे में गया। चित्रा ने काले रंग का सूट पहना था। मैं कुछ कहता इससे पहले चित्रा ने कहा- मैं तुमसे प्यार करती हूँ !
और यह कह कर उसने मुझे गले लगा लिया।
मैं भी सब कुछ भूल गया और चित्रा को चूमने लगा। आज मेरा भी सपना सच हो गया मैं कब से उसे ख्यालों में चोद रहा था, कब से उसके नाम की मुठ मार रहा था, आज वो चूत मेरी होने वाली थी। थोड़ी ही देर में उसकी साँसें तेज़ चलने लगी।
मैंने अपने एक हाथ से उसके चूचे मसलने चालू कर दिए और दूसरे हाथ से सलवार के ऊपर से उसके चूतड़ दबाने लगा। फिर मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और पैंटी के अंदर हाथ डालकर उसकी चूत सहलाने लगा।
वो सिसकारियाँ लेने लगी और साथ में हल्का सा विरोध भी कर रही थी।
फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और पंद्रह मिनट तक हम एक दूसरे के होंठ चूसते रहे। फिर उसके बाद मैंने उसका कुर्ता उतार दिया और फिर ब्रा भी उतार दी।
उसके चुचे ऐसे लग रहे थे जैसे दो रसदार संतरे !!
मैंने उसके एक चूचे को मुँह में ले लिया और दूसरे को हाथ से मसलना शुरू कर दिया। उसकी सिसकारियाँ बढ़ती ही जा रही थी। फिर उसने मेरी पैंट खोलकर मेरा लंड पकड़ लिया और मेरे लंड को दबाने लगी।
मुझे लगा जैसे मैं जन्नत में पहुँच गया। इतने में मैंने उसकी पैंटी नीचे सरका दी। उसने मेरी टी-शर्ट भी उतार दी। अब हम दोनों बिल्कुल नंगे एक दूसरे के सामने खड़े थे। उसकी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे।
फिर मैंने चित्रा को अपनी बाहों में समेटा और उसे बिस्तर पर लिटा दिया और जीभ से उसकी चूत चाटने लगा वो तो जैसे पागल हो उठी।
वो बोली- भैया, मुझे भी आपका लंड चूसना है !
उसके बाद हमदोनों 69 की अवस्था में आ गए। हम दोनों पंद्रह मिनट तक एक-दूसरे को ऐसे ही चूसते रहे और हम दोनों एक एक करके झड़ गए। फिर हम एक दूसरे के ऊपर लेट गए। थोड़ी देर में हम फिर गर्म हो गए और मैं फिर उसके चूचे चूसने लगा तो वो बोली- भैया, रहा नहीं जाता अपना लंड अंदर डाल दो !
उसकी चूत कुंवारी थी और मैं उसको दर्द नहीं पहुंचाना चाहता था इसलिए मैंने थोड़ी वेसलिन लेकर उसकी चूत की मालिश कर दी।
मेरा लंड 7 इंच लंबा और 3 इंच मोटा है।
उसके बाद मैंने अपना लंड चित्रा की चूत पर लगाया और हल्के-हल्के लंड को अंदर करने लगा पर अंदर जा ही नहीं जा रहा था क्योंकि उसकी चूत कुँवारी थी। मैंने हल्का सा धक्का लगाया तो वो तड़प गई और उसके मुँह से आह की आवाज़ निकल गई। मेरे लंड का सुपारा अंदर जा चुका था। फिर मैंने हल्के-हल्के अंदर डालना चालू किया और बीच-बीच में हल्का धक्का भी मार देता जिससे उसकी चीख निकल जाती। उसकी चूत बहुत कसी हुई थी। अब तक मेरा पूरा लंड उसकी चूत में जा चुका था फिर मैं हल्के हल्के अपने लंड को अंदर बाहर करने लगा।
शुरू में तो उसे थोड़ा दर्द हुआ फिर वो भी मेरा साथ देने लगी। हम दोनों चुदाई का पूरा आनंद ले रहे थे।
फिर हम दोनों बीस मिनट तक चुदाई का आनंद लेते रहे और फिर वो झड़ गई। मैं भी बस झड़ने वाला था फिर हम दोनों ने एक-दूसरे को कस के पकड़ किया और फिर अपना अपना पानी एक दूसरे में मिला दिया और उसके बाद हम एक-दूसरे में समा गए।
हम दस मिनट तक ऐसे ही पड़े रहे और उसके बाद बाथरूम में जा कर एक-दूसरे को साफ किया। हम लोग उस वक़्त भी बिल्कुल नंगे थे। एक दूसरे को साफ करते वक़्त मैंने उसे कई बार चूमा भी जिससे मेरा लंड फिर खड़ा हो गया, मैंने अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया और वो उसे दस मिनट तक चूसती रही। फिर हम दोनों नंगे ही बाहर आ गए।
मैंने बाहर आकर देखा तो स्वाति दीदी बिस्तर पर बैठी थी।
मैं अपने लंड को एक कपड़े से छुपाने लगा। दीदी ने आकर मुझे एक तमाचा मार दिया और बोली- यह क्या कर रहे थे।
तब चित्रा ने स्थिति को संभालते हुए कहा- मैंने कहा था ! हम आगे से ऐसा कुछ दोबारा नहीं करेंगे।
तब कहीं जाकर दीदी शांत हुई और मैं वापिस अपने कपड़े पहनने लगा तो दीदी बोली- अपनी दीदी की आग शांत नहीं करेगा?
यह कह कर दीदी मुझे चूमने लगी और चित्रा यह सब देखती रही मगर मैंने कहा- दीदी, मम्मी आने वाली है। हम दोनों तो कभी भी कर सकते हैं।
मैंने दीदी की चूत और चित्रा की गांड कैसे मारी, यह मैं अगली कहानी में बताऊँगा।

चित्रा के साथ सेक्स करते हुए पकड़े जाने के बाद दीदी की आग शांत करने की जिमेदारी मेरे मजबूत लौड़े पर आ गई। मगर शादी की वजह से भैया-भाभी ने ऑफिस से छुट्टी ले ली तो कोई मौका नहीं मिल रहा था। मगर कहते है न जहाँ चाह वहाँ राह।
शादी से दो दिन पहले सभी मंदिर गए थे। मगर दीदी के सर में दर्द था इसलिए दीदी घर पर ही रुक गई। जैसा कि मैंने पहले भाग में बताया था, दीदी बहुत ही सेक्सी है, एक दम गोरा रंग, कसा हुआ शरीर, तनी हुई चूचियाँ जो बड़ी थी। दीदी की चूचियों को देखते ही मेरा लंड सलामी देने लगता था। मैं पहले भी कई बार दीदी के नाम की मुठ मार चुका था मगर मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी मस्त चूत का मैं कभी राजा बनूँगा।
सभी के जाने के बाद मैं दीदी के कमरे की तरफ बढ़ा मगर तबीयत खराब होने की वजह से दीदी सोई हुई थी। उन्हें सोया देखकर मैं वापिस अपने कमरे में आ गया और अपनी किस्मत को कोसने लगा। मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और दीदी के नाम की मुठ मारने लगा।
थोड़ी देर के बाद सभी घर वापिस आ गए।
मैंने मम्मी से कहा- मैं अपने दोस्त के घर जा रहा हूँ !
तो चित्रा ने साथ चलने को कहा। मैं चित्रा की शरारत समझ गया और मैंने भी हाँ कह दी।
मैंने अपने और चित्रा के सेक्स के बारे में अपने दोस्त योगेंद्र को पहले ही बता दिया था। हम सभी उसे योगी कहते थे। वो भी आज इंजीनियर है हम दोनों एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाते। जब मैं उसके घर पहुँचा तो योगी के अलावा उसके घर में कोई और नहीं था। वैसे योगी के घर में उसके माता-पिता के अलावा उसकी दो बहनें भी हैं।
योगी के घर पहुँचने के बाद हम तीनों बात करने लगे। योगी चित्रा की तारीफ करने लगा, वैसे योगी एक नंबर का ठर्की है। फिर उसने हमें बीयर पेश की। चित्रा ने मना किया मगर मेरे कहने पर चित्रा ने हाँ कह दी। चित्रा को थोड़ी चढ़ने लगी जिसके कारण वो अंगड़ाई लेने लगी जिससे चित्रा के चूचों की गोलाई साफ-साफ दिखने लगी जिसे देखकर मेरा लंड खड़ा हो गया।
मैंने योगी की तरफ देखा तो उसका लंड भी साँप की तरह खड़ा था।
फिर मैंने चित्रा को देखा और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिये और उसे बाहों में उठा कर योगी के कमरे में ले गया।
योगी भी पीछे-पीछे आ गया, मैंने उसका सूट उतार दिया और फिर उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया और फिर मैंने चित्रा की पैंटी भी निकाल दी और उसकी चूत चाटने लगा। फिर योगी भी उसके होंठ चूमने लगा मगर चित्रा ने योगी का भी कोई विरोध नहीं किया।
फिर मैंने अपना मोबाइल निकाला और योगी को बिना बताए चित्रा और योगी की फोटो खींच ली। योगी तो चित्रा को चूमने में लगा हुआ था। अब चित्रा पूरे होश में थी और वो हमारा पूरा साथ दे रही थी शायद वो भी दो-दो लंड का मजा एक साथ लेना चाहती थी। फिर योगी उसके चूचे चूसने लगा और मैंने अपना लंड चित्रा के मुँह में डाल दिया।
फिर मैंने योगी को हटाया और चित्रा को घोड़ी बनने के लिए कहा और अपना लंड उसकी गांड पर रख कर रगड़ने लगा। इतने में योगी ने अपना लंड चित्रा के मुँह में रख दिया। चित्रा पहली बार गांड मरवा रही थी इसलिए मैंने पहले उसकी गांड पर क्रीम की मालिश की और फिर उसकी गांड में हल्का सा धक्का दिया तो वो चिल्लाने की कोशिश करने लगी मगर योगी का लंड उसके मुंह में था इसलिए वो चिल्ला भी नहीं सकी।
फिर मैं धीरे-धीरे अंदर बाहर करने लगा और बीच-बीच में हल्के धक्के मार देता जिससे उसकी चीख निकल जाती। मैं तीस मिनट तक उसकी गांड मारता रहा। इतनी देर में वो दो बार झड़ गई। जैसे ही मैं झड़ने वाला था मैंने अपना लंड निकाल और पूरा पानी उसके मुँह में डाल दिया।
फिर हम तीनों बिस्तर पर लेट गए। हम पंद्रह मिनट तक ऐसे ही लेटे रहे फिर मैंने अपने होंठ फिर से चित्रा के होंठों पर रख दिये। उसके बाद हम बाथरूम में जाकर एक-दूसरे को साफ करने लगे। फिर हम तीनों नंगे ही बाहर आ गए तो योगी ने चित्रा को पकड़ लिया और चित्रा के चूचे चूसने लगा। उसने चित्रा को बाहों में लेकर उसे बिस्तर पर लिटा दिया तो चित्रा बोली- अभी मैं थक गई हूँ !
मगर योगी ने उसकी एक नहीं सुनी और अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया तो वो दर्द के मारे चिल्ला उठी।
योगी पंद्रह मिनट तक उसकी चूत मारता रहा। फिर वो दोनों जाकर नहाये और फिर हम तीनों ने अपने कपड़े पहने और मैं और चित्रा वापिस घर आने लगे।
तभी चित्रा ने योगी के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और थेंक-यू कहा और फिर हम दोनों वापिस घर आ गए।
चित्रा और मैं काफी थक गए थे इसलिए हम दोनों मेरे कमरे में जाकर एक ही बिस्तर पर सो गए। जब मैं सो कर उठा तो देखा चित्रा वहाँ नहीं थी।
मैं उठा और चित्रा के कमरे की तरफ बढ़ा मगर चित्रा के कमरे का दरवाजा बंद था और अंदर से आवाजें आ रही थी। मैंने ध्यान से सुना तो चित्रा किसी से बात कर रही थी।
मैं सुनने के लिए दरवाजे के बिल्कुल पास आ गया तो यह कोई और नहीं बल्कि स्वाति दीदी थी।
मैं वापिस अपने कमरे में आ गया क्योंकि मुझे अब स्वाति दीदी का कोई डर नहीं था। मैं फ्रेश होने के बाद नीचे आ गया तो स्वाति दीदी और चित्रा पहले से ही नीचे थी। चित्रा ने सूट और स्वाति दीदी ने काले रंग की साड़ी पहन रखी थी। उस साड़ी में दीदी क्या कयामत लग रही थी।
थोड़ी देर में मुझे किसी की मिस कॉल आई मैंने देखा तो वो स्वाति दीदी की थी। मुझे समझते देर न लगी और मैंने रिटर्न कॉल की तो दीदी ने फोन नहीं उठाया।
मैं सीधा दीदी के कमरे की ओर बढ़ा। मैंने दरवाजे को हाथ लगाया तो दरवाजा खुला हुआ था। मैं अंदर गया तो दीदी अंदर थी, उन्होंने लाल रंग की पारदर्शी नाइटी पहन रखी थी। उनकी लाल रंग की ब्रा और पैंटी उस नाइटी में से साफ दिखाई दे रही थी।
मैंने दरवाजा बंद किया और अंदर आ गया। दीदी मेरे ऊपर टूट पड़ी और मेरी टी-शर्ट और बनियान उतार दी और मेरी छाती पर जीभ फेरने लगी।
मैंने भी देर न करते हुए दीदी के होंठो पर अपने होंठ रख दिये और हम दोनों पंद्रह मिनट तक एक-दूसरे को चूमते रहे। फिर मैंने दीदी की नाइटी उतार दी और ब्रा के ऊपर से ही उनके चूचे मसलने लगा जिससे दीदी मचल उठी। मैंने दीदी की ब्रा का हुक खोल दिया और अपना मुँह दीदी के होंठो से हटा कर उनके चूचे चूसने लगा।
हमें किसी का ड़र नहीं था क्योंकि रात का समय था और ज़्यादातर लोग सो चुके थे।
दीदी ने जोश में आते हुए मेरी पैंट और अंडरवीयर उतार दी और मेरा लंड दबाने लगी। मैंने भी स्वाति दीदी की पैंटी निकाल दी और उनको बाहों में लेकर उन्हें चूमने लगा जिससे उन्हें भी जोश आ गया और वो भी मेरा पूरा साथ देने लगी।
फिर मैंने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और उनकी चूत चाटने लगा जिससे वो सिहर उठी। मैंने आव देखा न ताव, अपना लंड दीदी के मुँह में रख दिया और फिर दीदी उसे लोलीपॉप की तरह चूसने लगी और हम 69 की अवस्था में आ गए। हम पंद्रह मिनट तक एक दूसरे को चाटते रहे और फिर मैंने अपना लंड दीदी की चूत पर रख दिया।
मेरी दीदी पहली बार किसी से चुदने वाली थी इसलिए मैं धीरे धीरे धक्का मारने लगा। जैसे ही मैं धक्का मारता, दीदी चिल्ला उठती। हमारा चुदाई कार्यक्रम बीस मिनट तक चला। इतने में दीदी दो बार झड़ गई, मैं भी झड़ने वाला था इसलिए मैंने धक्के मारना तेज़ कर दिया। दीदी को भी अब मजा आ रहा था। फिर मैं भी झड़ गया और हमारा पानी एक-दूसरे में मिल गया। फिर हम दोनों एक-दूसरे के ऊपर लेट गए, हम काफी देर तक वैसे ही लेटे रहे और हम एक दूसरे को चूमते रहे जिससे दीदी फिर से गर्म हो गई और मेरा लंड भी फिर खड़ा हो गया।
मैंने फिर से दीदी को चोदा। उस रात मैंने उन्हें चार बार चोदा। हम सुबह तक एक-दूसरे की बाहों में लेटे रहे। सुबह किसी ने दरवाजा खटकाया तो हम डर गए। मैंने खिड़की में से देखा तो वो चित्रा थी। चित्रा को सब पता था इसलिए वो चली गई और फिर मैं और दीदी उसके बाद बाथरूम में जाकर एक-दूसरे को साफ करने लगे। दीदी अपने चूचों पर पानी डाल-डाल कर साफ कर रही थी जिसे देख कर मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया। मैंने दीदी को बाहों में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया एक बार फिर उनकी चुदाई की।
फिर मैंने दीदी से कहा- मुझे तुम्हारी गांड मारनी है !
तो दीदी ने कहा- अभी नहीं ! सुबह हो चुकी है, कोई भी आ सकता है। और मेरे भैया राजा, अब तो मैं पूरी तुम्हारी हूँ, कभी भी मार लेना ! और अब मुझे अकेले में दीदी नहीं डार्लिंग बोला करो।
फिर हमने एक-दूसरे को एक लंबा चुंबन दिया और कपड़े पहन कर नीचे आ गए।
आप मुझे मेल करके बताइये आपको मेरी कहानी कैसी लगी।

सुबह नीचे आने के बाद मुझे बहुत ग्लानि महसूस हो रही थी कि मैंने अपनी बहन के साथ सेक्स किया मगर मुझे रह-रह कर उसकी उसकी मस्त चूचियों की चुसाई और उसकी चूत की खुशबू भी याद आती। मैं फिर अपने कमरे में वापिस चला गया। तभी दीदी मेरे कमरे में आई तो मैं वहाँ से उठ कर जाने लगा। तभी उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये जिससे मेरी बची हुई शर्म भी चली गई और मैं भी उनके होंठ चूसने लगा।
पाँच मिनट तक एक-दूसरे के होंठ चूसने के बाद दीदी उठी और वहाँ से जाने लगी तो मैंने उन्हें पकड़ लिया तो वो मुझसे बिल्कुल चिपक गई जैसे एक साँप चन्दन के पेड़ से चिपकता हैं और मैं फिर से उनके होंठो का रसपान करने लगा।
मगर फिर मम्मी की आवाज़ आई और दीदी नीचे चली गई।
उसके बाद शादी की वजह से मैं और दीदी दो दिनों तक सही से एक-दूसरे से बात भी नहीं कर पाये। खैर किसी तरह शादी निपट गई और चित्रा भी अपने घर चली गई। अब दीदी सुबह ही अपनी जॉब पर निकल जाती और शाम को लेट आती इसलिए मेरे लिए उनके पास कोई वक़्त नहीं बचता था और रविवार को सभी घर पर होते थे।
शनिवार था, मेरी कॉलेज की छुट्टी थी इसलिए मैं घर पर अपने कमरे में बैठा था तभी मम्मी की आवाज़ आई।
मैं नीचे गया तो मम्मी ने एक फ़ाइल मुझे देते हुए मुझे कहा- स्वाति यह फ़ाइल भूल गई है, उसका फोन आया है, तू जाकर यह फ़ाइल उसे उसके ऑफिस में दे आ।
मैंने फ़ाइल उठाई और ऑफिस चल दिया। दीदी का ऑफिस काफी दूर था इसलिए मैं कार ले गया। मैं ऑफिस पहुंचा तो चपरासी ने कहा- मैडम बॉस के साथ मीटिंग में हैं ! आप इंतज़ार कीजिये।
मगर मुझे घर जाने कि जल्दी थी इसलिए मैं स्वाति के बॉस के कैबिन की तरफ बढ़ गया। मैंने कैबिन का दरवाजा खोलना चाहा तो दरवाजा नहीं खुला, शायद दरवाजा अंदर से बंद था। मैंने खिड़की से झांक कर देखा तो मैं दंग रह गया क्योंकि अंदर दीदी बॉस की बाहों में थी और उनके तन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ पैंटी थी और उनका बॉस उनके चूचे चूस रहा था।
दीदी के बॉस का नाम श्यामलाल था और उनकी उम्र 48 थी मगर फिर भी वो काफी जवान दिख रहा था। यह देख कर मेरी आँखों से आंसू आ गए और मैं वापिस दीदी के कैबिन में आ गया।
थोड़ी देर के बाद दीदी वापिस अपने कैबिन में आई, मुझे देख कर बोली- तू इतनी जल्दी कैसे आ गया?
मैंने कहा- मैं कार से आया हूँ।
उनके पीछे उनका बॉस श्यामलाल आया और चपरासी से तीन चाय कह कर मुझे और दीदी को अपने कैबिन में बुलाया।
हम सब बैठ कर बात कर रहे थे। तभी कंपनी का मैनेजर अब्दुल आया और कोई फ़ाइल दीदी के बॉस को दी और फिर मुझे देख कर चला गया।
चाय पीने के बाद मैं कंपनी के गेट से निकला तो मुझे याद आया कि मैं अपनी चाभी तो दीदी के बॉस के कमरे में छोड़ आया। मैं चाभी लेने के लिए वापिस मुडा और दीदी के बॉस के कमरे की तरफ बढ़ा। मैंने दरवाजा खोलना चाहा तो दरवाजा फिर से बंद था।
मुझे समझते देर न लगी और मैंने खिड़की से झाँका तो मैंने जो सोचा था उससे ज्यादा देखने को मिला। दीदी का बॉस श्यामलाल और कंपनी का मैनेजर अब्दुल दोनों मेरी बहन को बड़ी बेदर्दी से चोद रहे थे और मैं कुछ नहीं कर पा रहा था। मगर मैं अंदर भी नहीं जा सकता था और मैं वहाँ खड़ा रह कर देख भी नहीं सकता था क्योंकि मेरी कार की चाभी अंदर थी। फिर मैंने अपना मोबाइल निकाला और दीदी की उसके बॉस और कंपनी के मैनेजर के साथ फोटो खींच लिए।
तभी मैनेजर उठा और कपड़े पहनने लगा मुझे लगा कि शायद दीदी का चुदाई कार्यक्रम खत्म हो गया। मगर दीदी का बॉस रुक नहीं रहा था और दीदी की चूत का भोसड़ा बनाने में लगा था। श्यामलाल अपना जोशीला लंड दीदी की चूत से निकालने को ही तैयार ही नहीं था।

2 comments:

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